इसी समय उनके भाग्य के आकाश पर दूसरा तारा चमका। एजाज के मकान से चलकर यूसुफ राजधानी आए और बाजार में ठहरे।
भेस बदले हुए थे। प्रभाकर को देखकर चौंके; दुकान में एक जाकेट सिला रहे थे। शाम के बाद से प्रभाकर का पता न चला।
मैनेजर ने बुलाया है, एक अजनबी आदमी से कहलाकर राह पर मिले और मैनेजर ने भेजा है, कहकर भाव ताड़ने लगे। खजानची की कुंजी हाथ से छूट चुकी थी, कलेजा धड़का। डरकर सँभले।
"हम आपका भला कर सकते हैं।" यूसुफ ने कहा।
खोदाबख्श रानी की मैत्री की ताकत से आगंतुक को देखते रहे।
"आपका राज बिगड़ा है, मान जाइए।" यूसुफ ने कहा।
खोदाबख्श का दिल बैठ गया। मैनेजर उससे बड़ा है; कुछ गड़बड़ मालूम हुई हो, सोचकर दहले। उठा कि कह दें, पर सँभाल लिया।
यूसुफ ने कहा, "आपको अब मैनेजर के पास न जाना होगा, हमीं उनकी मारफत आपसे मिलने आए हैं। उनसे हमारा हाल मालूम करने की हिमाकत न कीजिएगा।
हम सरकारी। आप हमसे फायदा उठा सकते हैं? फिर हम भी मुसलमान हैं।"
खजानची को बहुत खुशी न हुई, क्योंकि एक फायदा अभी पूरा-पूरा नहीं उठा पाए थे।
फिर भी, यह सोचकर कि आगे क्या आनेवाला है और खुदगर्ज अपनी ओर से फायदे में ला रहा है, बात सुन लेनी चाहिए।